Subhash Chandra Bose In Hindi यह लेख British Prime Minister Attlee द्वारा 1947 के बाद भारत दौरा के दौरान Subhash Chandra Bose की आज़ाद हिन्द फौज पर जो टिप्पड़ी की थी उस पर केंद्रित हैं.
बात उस समय की हैं जब पूरा विश्व द्वितीय विश्व युद्ध की आग में जल रहा था विश्व की लगभग आधे से ज्यादा देश परोक्ष या अपरोक्ष रूप से इस युद्ध का हिस्सा थे भारत को इस युद्ध से कोई लेना-देना नहीं था लेकिन अग्रेजो के गुलामी के कारण भारत को इस युद्ध में अंग्रेजो की तरफ से लड़ना पड़ा था।
विश्व युद्ध में अंग्रेजो को भारी क्षति उठानी पड़ रही थी जिससे भारत जैसे बड़े देश को संभल पाना मुश्किल हो रहा था। मौके की नजाकत को देखते हुवे हिटलर और जापान की मदद से सुभाष बाबू ने आज़ाद हिन्द फौज द्वारा 1942 में अंग्रेजो पर हमला कर दिया तथा "दिल्ली चलो" का नारा दिया।
विश्व युद्ध में अंग्रेजो को भारी क्षति उठानी पड़ रही थी जिससे भारत जैसे बड़े देश को संभल पाना मुश्किल हो रहा था। मौके की नजाकत को देखते हुवे हिटलर और जापान की मदद से सुभाष बाबू ने आज़ाद हिन्द फौज द्वारा 1942 में अंग्रेजो पर हमला कर दिया तथा "दिल्ली चलो" का नारा दिया।
ये बात सुनते ही गाँधी जी ने आनन्-फानन में बिना किसी तैयारी के सुभाष बाबू के आंदोलन को फेल करने के लिए मुंबई से आधी रात को अंग्रेजो भारत छोडो नामक अहिंसात्मक आंदोलन छोड़ा तथा "करो या मरो" का नारा दिया।
Subhash Chandra Bose In Hindi
पुरे देश में अंग्रेजो को भागने के लिए भारत वासी एक दम बेचैन थे लेकिन आम जनता के नेता गाँधी ने अहिंसा का पाठ पढ़ा के सबको मुर्ख बनाये रखा और अंग्रेजो के लिए सुरक्षा कवच बने रहे लेकिन गाँधी का अंतिम आंदोलन सरदार वल्लभभाई पटेल, श्यामा प्रसाद मुखर्जी, लालबहादुर शास्त्री जैसे राष्ट्रवादियो द्वारा हाईजैक कर लिया गया तथा "करो या मरो" की जगह बड़ी चतुराई से "करो या मारो" का नारा दिया गया.
परिणाम स्वरुप पुरे भारत में अंग्रेजो के खिलाफ हिंसात्मक आंदोलन शुरू हो गया। चारो तरफ से घिरे अंग्रेजो को यह विस्वास हो गया की हम ज्यादा दिन तक भारत को गुलाम नहीं बना सकते जैसे तैसे अपने चमचो चापलूसों के दम पर अंग्रेजो ने अंग्रेजो भारत छोडो आंदोलन तथा सुभाष बाबू को कण्ट्रोल किया लेकिन सुभाष बाबू का आजाद हिन्द फौज का डर अंग्रेजो के जेहन में बैठ चूका था।
परिणाम स्वरुप पुरे भारत में अंग्रेजो के खिलाफ हिंसात्मक आंदोलन शुरू हो गया। चारो तरफ से घिरे अंग्रेजो को यह विस्वास हो गया की हम ज्यादा दिन तक भारत को गुलाम नहीं बना सकते जैसे तैसे अपने चमचो चापलूसों के दम पर अंग्रेजो ने अंग्रेजो भारत छोडो आंदोलन तथा सुभाष बाबू को कण्ट्रोल किया लेकिन सुभाष बाबू का आजाद हिन्द फौज का डर अंग्रेजो के जेहन में बैठ चूका था।
और यही कारण था की अंग्रेजो ने भारत छोड़ने का निर्णय लिया। सुभाष चंद्र बोस दुबारा अंग्रेजो पर हमला करने के लिए दिन रात अपनी सैन्य क्षमता बढ़ाने में लगे हुवे थे जो अंग्रेजो के लिए एक घोर चिंता का विषय बन गया था इसीलिए अंग्रेजो ने प्लान बनाया की सुभाष बाबू के दिल्ली पहुंचने से पहले ही अपने सहयोगियों को भारत का सत्ता देकर बाइज़्ज़त अपने देश इंग्लैंड लौट जायेंगे नहीं तो आज़ाद हिन्द फौज खदेड़ के भगाये गी और जान से भी हाथ धोने का खतरा हैं।
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इसीलिए अंग्रेजो ने सुभाष बाबू को राष्ट्रीय अपराधी घोषित कर उनके गिरफ़्तारी का फरमान निकाल कर सारा पावर गाँधी और नेहरू को दे कर अपना पीठ खुद थपथपाते हुवे भारत में सत्ता हस्तारान्तरण करके चले गए जिसे हम आज़ादी समझने की भूल करते हैं। जिस आजाद भारत में सुभाष चंद्र बोस जैसा भारत माता का सच्चा पुत्र अपराधी हो वह भारत आज़ाद नहीं कहला सकता हैं। इसीलिए मैं कहता हूँ भारत आज़ाद हैं यह सबसे बड़ा मजाक हैं।
षड्यंत्र के शिकार क्रन्तिकारी
- आज़ादी के बाद भी वीर सावरकर और सुभास बाबू जैसे भारत को आज़ाद करने वाले महान क्रांतिकारियों के साथ हुवे दुर्व्यवहार देख कर उनको आज़ादी के बाद भी देश निकाला या वीर सावरकर को नेहरू द्वारा लाल किला में कैद रखने के कानून को देखकर यह प्रश्न उठता हैं की क्या हम आज़ाद हैं ?
- नीरा आर्या जैसे साहसी क्रन्तिकारी का पहले स्तन काटा गया फिर आज़ादी के बाद फूल बेचकर उन्होंने अपना जीवन गुजरा किया 1998 तक वो लावारिस बीमार वृद्धा का जीवन जी रही थी उनकी झोपडी को भी नेहरू सरकार द्वारा तोड़ दिया गया। नीरा आर्या की कहानी सुनकर मन में प्रश्न उठता हैं क्या हम सचमुच आज़ाद हैं।
- सभी आंदोलनों की तरह गाँधी जी का अंतिम आंदोलन निष्फल हुआ जो थोड़ा बहुत सफलता भी मिली तो वह गांधी के साथ वाले राष्ट्रवादी नेताओ की वजह से मिला जिन्होंने कही न कही इस आंदोलन को हिंसात्मक बनाया जो समय के हिसाब से अत्यंत आवश्यक था। फिर भी अंग्रेजो ने इस आंदोलन को भी कुछ ही महीनो में निर्णय में ले लिए फिर आखिर पाँच साल बाद उस समय गाँधी द्वारा या किसी के भी द्वारा कोई आंदोलन नहीं किया जा रहा था सिर्फ सुभाष बाबू सैन्य क्षमता बढ़ाने में लगे थे। गाँधी तो सिर्फ मुस्लिमो की चिंता तथा अपने ब्रह्मचर्य प्रयोग पर ध्यान केंद्रित किये हुवे थे फिर आखिर क्या हुआ की अंग्रेजो को 1947 भारत छोड़ के जाना पड़ा।
सुभाष बाबू ने फहराया था आज़ादी का पहला झंडा
कारण सिर्फ एक था द्वितीय विश्व युद्ध में हुवे भारी क्षति और सुभाष बाबू की सैन्य तयारी। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अंग्रेजो को दोबारा युद्ध करने की क्षमता नहीं थी और इधर सुभाष बाबू देश की आज़ादी के लिए युद्ध की युद्ध स्तर पर तैयारी कर रहे थे और युद्ध भी कर रहे थे. 1947 से पहले ही 30 दिसम्बर 1943 को सुभाष बाबू ने अंडमान निकोबार से अंग्रेजो को मार के भगाया था तथा स्वतंत्रता का पहला झंडा अंडमान निकोबार में 1943 में फहरा दिया था. अंग्रेजो ने सुभाष बाबू के डर से की यदि वो दिल्ली पहुंच गए तो अंग्रेजो को अपने जान से हाथ धोना पड़ेगा और भारत को पूर्ण स्वराज्य भी मिलेगा जिससे की अंग्रेजो को भविष्य में कोई फायदा भी नहीं होगा।
नेताजी ने 30 दिसंबर 1943 को पहली बार अंडमान निकोबार द्वीप समूह की पर राष्ट्रीय ध्वज फहराया था तथा अंडमान का नाम शहीद और निकोबार का नाम स्वराज रखा. पोर्ट ब्ल्येर का जिमखाना मैदान जिसे अब सुभाष चंद्र बोस स्टेडियम के नाम से जाना जाता है वहा ध्वज फहराने के बाद आजाद हिन्द के फौजी और आम जनता को सम्बोधित कहा था की " हिंदुस्तान की आज़ादी की जो विजय गाथा अंडमान की भूमि से शुरू हुई है वह दिल्ली में वायसराय के घर पर भारतीय ध्वज फहराने के बाद ही रुकेगी।"
सुभाष बाबू का यही संकल्प अंग्रेजो के जड़ को हिला दिया और उन्हें उखाड़ फेका। नेताजी के लगातार अंग्रेजो के साथ युद्ध अंग्रेजो को 1947 में सोची-समझी चल के तहत वापस इंग्लैंड जाने का कारण बना ना की गाँधी का मनोरंजन।अतः एक षड्यंत्र के तहत भारत को हमेशा गुलाम बनाने के लिए अंग्रेजो ने ब्रिटेन राज के वफादारी की कसम खाने वाले अपने वफादार सहयोगी गाँधी और नेहरू को भारत का सत्ता ट्रांसफर कर सुभाष बाबू के दिल्ली पहुंचने से पहले ही भाग खड़े हुवे। ब्रिटेन में जो भी ब्रिटिश राज की वफादारी करने की कसम खाता था उसे ही कोई भी डिग्री दी जाती थी एक हिसाब से उसे ब्रिटिश एजेंट बना दिया जाता था. यही कसम वीर सावरकर ने नहीं खाया तो उन्हें बैरिस्टर की डिग्री नहीं दी गई जबकि उन्होंने सभी परीक्षाएँ टॉप नंबर से पास किया। गाँधी और नेहरू आदि ने गर्व से ब्रिटिश राजा के वफादारी की कसमे खाई और कभी न केस लड़ने वाले बैरिस्टर बने.तत्कालीन ब्रिटेन प्रधानमंत्री ने कहा था की गाँधी ने नहीं बोस ने हमें भारत छोड़ने पर किया था मजबूर
तत्कालीन ब्रिटेन प्रधानमंत्री क्लीमेंट एटली जिन्होंने उस समय भारत को आज़ादी दिया था। 1956 में जब भारत दौरे पर आये तो कलकत्ता के कार्यवाहक गवर्नर पीबी चक्रवर्ती के मेहमान बने तथा कुछ दिनों के लिए बंगाल में रुके थे। इस दौरान चक्रवर्ती ने एटली से भारत के आज़ादी के बारे में कुछ सवाल पूछे की क्या कारण था की अंग्रेजो ने भारत छोड़ के जाने का निर्णय लिया।
एटली ने जवाब दिया जवाब दिया की भारतीय सैनिको विद्रोह और आज़ाद हिन्द फौज हिंसा के डर से अंग्रेजो ने भारत छोड़ा। चक्रवर्ती ने एक साक्षात्कार में कहा था की "जब मैंने एटली से पूछा की गाँधी के अहिंसा ने भारत की आज़ादी में कितना योगदान दिया था तो एटली ने कुटिल मुस्कान के साथ कहा सबसे कम योगदान गाँधी के अहिंसा का था।"
क्लीमेंट एटली की कही बात एकदम सही हैं उस समय 1946 में स्थिति अंग्रेजो के लिए बदत्तर हो गए थे। भारतीय सैनिक और अंग्रेजी सैनिको के बिच में द्वेष लगा था। साथ ही आज़ाद हिन्द फौज की सैन्य क्षमता में दिन रात बढ़ोत्तरी और सुभाष बाबू के हमले का डर ही अंग्रेजो को भारत छोड़ने पर विवस किया।
बहादुर भूतपूर्व सैनिक श्री G D बक्सी जी ने अपने आने वाले किताब में इस बात का विस्तारपूर्वक वर्णन किया हैं साथ ही उन्होंने कई मौको पर सार्वजनिक मंच से बेझिझक कहा हैं की " बिना खड़ग बिना ढाल साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल यह भारतीय इतिहास का सबसे बड़ा झूठ हैं इससे बड़ा झूठ कोई हो ही नहीं सकता।"Subhash Chandra Bose In Hindi : आपकी प्रतिक्रिया हमारा मार्गदशन हैं.
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